भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 22 जुलाई 2025 को एक ड्राफ्ट नोटीफिकेशन G.S.R. 499 (E) के द्वारा 1 अप्रैल 2027 से लिथियम बैटरी को ई-रिक्शा में अनिवार्य कर दिया गया है।
फैडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल स्केल बैटरी एसोसिएशंस ने केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी सड़क परिवहन और राजमार्ग विभाग से गुहार लगाई है कि यह नोटीफिकेशन संवैधानिक उल्लंघन है और इसकी प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है। इसमें न तो पर्याप्त रूप से विशेषज्ञों का परामर्श लिया गया है और न ही सम्बंधित उत्पादक/व्यापारिक संगठनों से विचार विमर्श किया गया है।
यह एक तरफा निर्णय क्या चीन की लिथियम बैटरी निर्माताओं की लॉबी को अनुचित लाभ पहुँचाने के लिए लिया गया है?
यह कदम स्वदेशी उत्पाद को बढ़ावा देने के लक्ष्य के विपरीत चीन के उत्पाद को बढ़ावा दे रहा है। प्रति वर्ष लगभग 20 हजार करोड़ रु का बैटरी का बाज़ार चीन को चला जायेगा ।
बैटरी उद्योग और इससे जुड़े अनेक उद्योगों पर आश्रित लगभग 10 लाख लोगों का रोजगार छिन जाएगा।
गरीब ई-रिक्शा चलाने वालों के खर्च में 50 से 150 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी।
सिर्फ लिथियम बैटरी को बढ़ावा देने का एक तरफा नियम क्यों जबकि हमारे देश में लैड बैटरी बनाने का पूरी तरह से विकसित तंत्र और साधन उपलब्ध हैं। कच्चा माल भी देश में उपलब्ध है और उपयोग में आ चुकी बैटरियों की रीसाइक्लिंग होकर पुन: उपयोग में आने वाला कच्चा माल भी बन जाता है।
लिथियम-आयन बैटरी को रीसाईकल करने का तंत्र अपने देश में नहीं है और उसकी रीसाइक्लिंग लागत भी बहुत अधिक है।
लिथियम-आयन बैटरी भरोसेमंद नहीं है। थोड़ी सी लापरवाही या किसी भी कम्पोनेन्ट की कमी से लिथियम बैटरी कभी भी बम की तरह धमाके के साथ फट सकती है। देश-विदेश में ऐसी बहुत दुर्घटनाएं हो चुकी हैं।
भारत में वर्षों से प्रचलित लैड बैटरी उद्योग और व्यवसाय में लगे लाखों आश्रितों की आजीविका के लिए यह नोटीफिकेशन अभूतपूर्व खतरा बनकर आया है। नीति में वैज्ञानिक आधार का अभाव है, यह सरकार के अपने नियम ढांचे के विपरीत है, और समान व्यवहार और उचित प्रक्रिया के संवंधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
नोटीफिकेशन के नियम 125 R के अनुसार 1 अप्रैल 2027 को या उसके बाद निर्मित सभी ई-रिक्शा और ई-कार्ट में लिथियम आयन बैटरी पैक लगाए जाएंगे और इसका परीक्षण समय-समय पर संशोधित ए आई एस 156 भाग 1 और भाग 2 के अनुसार होगा।
यह प्रावधान 1 अप्रैल 2027 के बाद निर्मित सभी नए ई-रिक्शा और ई-कार्ट में लैड एसिड बैटरी पर प्रभावी रूप से प्रतिबन्ध लगाता है जिससे लैड बैटरी उद्योग के लिए यह बाजार पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हो जाएगा।
नए नियम का दुष्प्रभाव
वर्तमान ई-रिक्शा बाजार का 90 प्रतिशत लैड एसिड बैटरी का उपयोग करता है।
उद्योग से सालाना लगभग 20 हजार करोड़ रु के राजस्व की हानि होगी।
ई-रिक्शा चलाने वालों के लिए बैटरी लागत में 50 से 150 की वृद्धि हो जाएगी।
लैड बैटरी विनिर्माण तंत्र में 10 लाख प्रत्यक्ष नोकरियां चली जाएँगी।
संवैधानिक उल्लंघन
यह अधिसूचना तर्क संगत और वैज्ञानिक आधार के बिना बैटरियों के बीच मनमाना वर्गीकरण करती है। सरकार के अपने सी पी सी बी फ्रेम वर्क व ई पी आर नियमों के तहत दोनों प्रकार की बैटरियों के साथ समान रूप से व्यवहार होना चाहिए जबकि इस अधिसूचना में भेद भावपूर्ण व्यवहार है। मेनका गाँधी बनाम भारत संघ वाद में स्पष्ट फैसला है कि वर्गीकरण के लिए उचित प्रक्रिया और तर्कसंगत आधार होना चाहिए।
व्यापार और व्यवसाय के अधिकार पर प्रतिबन्ध
यह अधिसूचना लैड बैटरी निर्माताओं और ई-रिक्शा व ई-कार्ट्स चालको पर अनुचित प्रतिबन्ध लगाती है। इस नोटीफिकेशन से उनकी व्यवसाय संचालन की क्षमता प्रभावी रूप से समाप्त हो जाएगी। खोडे डिस्टलरीज बनाम कर्नाटक राज्य वाद में व्यपार प्रतिबंधों को अनुपतिकता परीक्षण पास करना होगा।
जीवन और आजीविका का आधार
यह नीति लैड बैटरी इकोसिस्टम पर निर्भर लाखों लोगो की आजीविका को खतरे में डालती है। जिसमें निर्माता, डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर, रीसायकलर, ई-रिक्शा और ई-कार्ट्स चालक शामिल हैं। ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम वाद में अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका संरक्षण प्रदान किया गया है।
प्रक्रियात्मक उल्लंघन
नियत प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ : अनिवार्य 30 दिवसीय हितधारक आपत्ति अवधि से बचने के लिए मसौदा नियमों के बजाय कार्यकारी आदेश जारी किया गया।
कानून का टकराव : राज्य के प्राधिकारियों द्वारा एक ऐसे उत्पाद-लैड एसिड बैटरी पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है जो केन्द्रीय मंत्रालय के (MORTH) के विभाग के नियमों के तहत तकनीकी रूप से वैध है।
पूर्वव्यापी नुकसान: सनसेट क्लोज के बिना अचानक कार्यान्वयन मौजूदा इन्वेंटरी और निवेश के मूल्य को नष्ट करेगा।
मनमानी: सुरक्षा आधार पर वैज्ञानिक औचित्य के बिना एक सुरक्षित प्रौद्योगिकी-अर्थात लैड एसिड बैटरी पर प्रतिबन्ध लगाते हुए अग्नि-प्रवण प्रौद्योगिकी-लिथियम बैटरी को अनिवार्य करना।
अपर्याप्त विचार विमर्श
इस तरह की दूरगामी आर्थिक प्रभाव वाली नीति के लिए 30 दिन की टिप्पणी अपर्याप्त है। उद्योग हितधारकों को तकनीकी विश्लेषण के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है। राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ वाद में सार्थक विचार-विमर्श आवश्यकता को जरूरी बताया गया है। यह अधिसूचना लिथियम-आयन विकल्पों की तुलना में लैड एसिड बैटरी रीसाइक्लिंग की बेहतर सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रदर्शन को प्रदर्शित करने वाले सहकर्मी-समीक्षित वैज्ञानिक प्रमाणों का खंडन करती है।
अन्य विनाशकारी दुष्प्रभाव
1. चीन के लिए नीति संचालित मोनोपोली बनाना: क्या सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय अनजाने में चीनी निर्माताओं के लिए बिक्री एजेंट के रूप में कार्य कर रहा है ? लिथियम प्रौद्योगिकी के पक्ष में नीतियों को आक्रमक रूप से आगे बढ़ाकर मंत्रालय प्रभावी रूप से चीनी लिथियम सेल निर्माताओं के दिग्गजों को एकाधिकार बाजार सौप रहा है। यह सिर्फ एक प्रौद्योगिकी बदलाव नहीं है। यह एक संप्रभुता आत्मसमर्पण है जो भारतीय सड़कों पर चीनी आधिपत्य के लिए एक उपजाऊ जमीन बनाता है।
2. ई-रिक्शा अधिदेश: स्थानीय उद्योग को खत्म करने की दिशा में पहला कदम ई-रिक्शा के लिए लिथियम आयन बैटरी में प्रस्तावित अनिवार्य बदलाव इस नीति का ट्रोज़न हॉर्स है। सबसे पहले ई-रिक्शा क्षेत्र को लक्ष्य करके सरकार स्वदेशी लैड एसिड बैटरी क्षेत्र को चरणवद्ध लक्ष्य से समाप्त करने की शुरुआत कर रही है। यह जनादेश महंगे, अयातित विकल्पों के पक्ष में सस्ती, स्थानीय रूप से बनाई गई तकनीक को ध्वस्त करने के लिए पहले कदम के रूप में कार्य करता है।
3. आर्थिक रक्तस्राव: वर्तमान एक्सपोर्ट डाटा के अनुसार चीन को लिथियम सेल की खरीद हेतु सालाना 30 हजार करोड़ रु. ट्रान्सफर हो रहे हैं। हम भारतीय लघु बैटरी उद्योग से चीनी कंपनियों को बड़े पैमाने पर धन हस्तांतरण देख रहे हैं। एक्सपोर्ट डाटा एक भयानक वास्तविकता की पुष्टि करता है। भारतीय एक्सपोर्टर वर्तमान में चीनी सप्लायर्स को भुगतान करने के लिए हमारी अर्थव्यवस्था से हर महीने लगभग 2 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए निकाल रहे हैं। अकेले वित्त वर्ष-2024-25 में लिथियम आयन सेल के आयात के लिए 24 हजार करोड़ में से 20 हजार करोड़ रुपए सीधे चीन में गए। रुझानों से पता चलता है कि यह आंकड़ा इस वित्त वर्ष में 30 हजार करोड़ को पार कर जाएगा। मंत्रालय की नीति अनिवार्य रूप से भारतीय रुपए की कीमत पर चीनी अर्थव्यवस्था को वित्त पोषित कर रही है।
4. मेक इन इंडिया सर्कुलर इकोनोमी का विनाश: यह नीति उन हजारों भारतीय MSME बैटरी निर्माताओं के व्यवसाय को सीधा नुकसान पहुंचाएगी जिन्होंने दशकों से कुल इको सिस्टम का निर्माण किया है। भारत लैड एसिड बैटरियों के लिए अच्छे तरह से विकसित, संगठित और अत्यधिक विश्वसनीय सर्कुलर इकोनोमी का दावा करता है। जहां 90 प्रतिशत से अधिक सामग्री को पुनर्प्राप्त किया जाता है और स्थानीय रूप से पुन: उपयोग में लिया जाता है। यूज एंड थ्रो आयात मॉडल का पक्ष लेने के लिए इस आत्मनिर्भर, श्रम गहन क्षेत्र को खत्म करना उन लाखों नागरिकों के लिए एक आर्थिक त्रासदी है जिनकी आजीविका इस पर निर्भर करती है।
5. विषाक्त प्रदूषणकारी लिथियम के लिए ग्रीन रीसाइक्लिंग का व्यापार: यह कहानी की लिथियम हरा है एक खतरनाक मिथ है। लिथियम आयन बैटरियां जहरीले इलेक्ट्रोलाइट्स और कोबाल्ट जैसी सामग्रियों पर निर्भर करती हैं जो खनन से लेकर निपटान तक पर्यावरण की दृष्टि से विनाशकारी हैं। लैड एसिड बैटरियों के विपरीत जो भारत के परिपक्व इकोसिस्टम में अंतहीन रूप से पुनरचक्रण योग्य हैं। भारत में लिथियम बैटरी को सुरक्षित रूप से रीसायकल करने के लिए बुनयादी ढांचे का अभाव है। हम स्वच्छ उर्जा की आड़ में भविष्य के जहरीले लैंडफिल और भूजल संदूषण का आयात कर रहे हैं।
6. सुरक्षा खतरा: आग और विस्फोटों की वास्तविकता को नजर अंदाज करके मंत्रालय एक ऐसी तकनीक पर जोर दे रहा है जिसने बार-बार स्वयं को भारतीय उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों के लिए असुरक्षित साबित किया है। लिथियम आधारित वाहनों में लगातार विस्फोट और आग लगने की घटनाएँ सिर्फ दुर्घटनाएं नहीं हैं वे हमारे पर्यावरण के लिए अनुपयुक्त रासायनिक रूप से अस्थिर प्रणाली के प्रमाण हैं। इस बदलाव को अनिवार्य करके प्रसाशन भारतीय ड्राईवरों और यात्रियों की सुरक्षा और जीवन पर विदेशी प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता दे रहा है।
वित्तीय प्रभाव विश्लेषण
उद्योग स्तरीय प्रभाव लैड बैटरी उद्योग से राजस्व हानि: 12000 से 15000 रु करोड़ सालाना। एम् एस एम् ई नौकरी का नुकसान: लगभग एक लाख प्रत्यक्षा रोजगार। रीसाइक्लिंग उपकरण: 5 हजार से 8 हजार करोड़ का निवेश बेकार हो जायेगा। सरकारी राजस्व हानि: जीएसटी संग्रह में 1500 से 2000 करोड़ वार्षिक हानि। ऑपरेटर स्तर का प्रभाव:
वार्षिक लागत वृद्धि 21 हजार से 36 हजार प्रति ई-रिक्शा चालक। बाजार में व्यवधान: 18 लाख से अधिक ई-रिक्शा चालक प्रभावित। आजीविका के लिए खतरा : आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से अधिकांश चालक।
राष्ट्रीय आर्थिक प्रभाव
आयात निर्भरता: लिथियम बैटरी व सेल के आयात के लिए 25 हजार से 30 हजार करोड़ रु. कुल व्यवधान: 5 वर्षों में 75 हजार से 100 हजार करोड़ रु.। व्यापार संतुलन : आयात में वृद्धि के कारण नकारत्मक प्रभाव।
लैड एसिड बैटरी के लाभ
रीसाइक्लिंग दर: 98 प्रतिशत- विश्व स्तर पर किसी भी वस्तु की उच्चतम पुनर्प्राप्ति। सुरक्षा प्रोफाइल: आग की दुर्लभ घटनाएँ, स्थिर रसायन विज्ञापन। नियामक अनुपालन: सी पी सी बी और ई पी आर फ्रेम वर्क का पूर्ण अनुपालन। प्रभावशीलता: स्वामित्व की कुल लागत 50 से 60 प्रतिशत कम।
लिथियम-आयन सम्बन्धी चिंताएं
आग का खतरा: तापमान में अनियंत्रित वृद्धि 388 से 442°C तक विस्फोट के खतरे। रीसाइक्लिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर : भारत में 5 प्रतिशत से कम औपचारिक पुनर्च्करण। आयात निर्भरता : कच्चे माल के लिए आयात पर 85% से अधिक निर्भरता। जीवन के अंत का प्रबंधन : कोई बायबैक प्रणाली नहीं, निपटान के लिए ग्राहक भुगतान करता है।
सरकारी नियामक विरोधाभास
सी पी सी बी फ्रेम वर्कः अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के तहत दोनों प्रकार की बैटरी को समान रूप से मानता है। अंतर्राष्ट्रीय मानकः विमानन अधिकारी आग के जोखिम के कारण लिथियम-आयन को प्रतिबंधित करते हैं। अदालत के फैसले: दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले सरकार के अपने तकनीकी दिशानिर्देशों के विपरीत हैं।
सरकार से निवेदन है कि इस ड्राफ्ट नोटीफिकेशन से लिथियम बैटरी को जरूरी करने के प्रावधान को निरस्त करें।